अंतिम रात

जब अपना कोई 

छोड़ देता है साथ 
वही है जीवन की 
अंतिम रात, 
जब होते हैं अपने 
तो हर काम होता पूरा 
जो ना रहे वह साथ तो 
वह जीत कर भी अधूरा 
राते अंतिम नहीं 
पहली भी हो सकती है,
जो साथ है अपनों का 
तो हर रात दिवाली 
सी हो सकती है
काट लेते हैं 
दिन तन्हाई में 
पर गुजरती नहीं है रातें 
नित्यक्रम में बितता दिन 
पर रात न गुजरती 
याद आती उनकी बातें 
कहां मिले  कैसे मिले 
क्या हो सकता है
यही सोचते हैं
जब थे साथ, 
ना खुल कर मिल सके
यही सोच कर 
खुद को कोसते है
भविष्य की सोच में 
घर आंगन छोड़ आए थे
जो थे साथ उनसे 
रिश्ता खुद ही तोड़ आए थे
भटक रहे थे,
आधुनिकता के शहर में 
आधी जिंदगी बीत गई
अपनों से ही बैर में 
जब सोचा चलो खुशियां बांटे 
चलो अपनों के साथ 
देर हो चुकी 
आ गई अंतिम रात
जाने कौन सा वक्त मैंने 
अपनों के साथ विचारा था
लगता है वही जीवन का 
सार सारा था
खुल कर जिओ 
ना छोड़ो अपनों का साथ 
फिर ना रात अंतिम होगी
जब होंगे अपने साथ 
वह अंतिम रात 
भी दिवाली होगी.......

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8 Comments

madhura

29-Jun-2023 04:55 PM

nicee

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K.K.KAUSHAL (Advocate)

24-Jun-2023 08:55 PM

अति सुंदर बधाई हो ।

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Punam verma

24-Jun-2023 07:50 AM

Very nice

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